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अनिल अग्रवाल का सुझाव सोने की खानों में हिस्सेदारी बेचे सरकार

धातु की प्रमुख कंपनी वेदांत के चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने कहा है कि भारत में सोने का उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार को भारत गोल्ड माइन और हट्टी गोल्ड माइन में अपनी हिस्सेदारी बेचनी चाहिए.

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अग्रवाल ने पोस्ट कर कहा है कि दुनिया भर में सोने की कीमतें अभी रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं और भारत अपनी जरूरतों का 99.9 फीसदी सोना आयात करता है. अग्रवाल ने कहा, ‘भारी निवेश के साथ हम सोना के सबसे बड़े उत्पादक और रोजगार देने वाले बन सकते हैं.’

उन्होंने कहा कि भारत में फिलहाल भारत गोल्ड माइन और हट्टी गोल्ड माइंस में ही सोने का उत्पादन होता है और आगे बढ़ने का सर्वोत्तम तरीका दोनों का निजीकरण करना है. साल 2023 में भारत की कुल स्वर्ण खपत 747.5 टन थी, जो एक साल पहले के मुकाबले 3 फीसदी कम थी.

वैश्विक बाजारों में मजबूत रुख के कारण पिछली तीन कारोबारी सत्रों की गिरावट के बाद शुक्रवार को सोने की कीमतों में 50 रुपये की मजबूती दर्ज की गई और प्रति 10 ग्राम सोने की कीमत 70,700 रुपये हो गई. गुरुवार को इस बहुमूल्य धातु की कीमत 70,650 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुई थी. बजट में केंद्र सरकार ने सोने पर आयात शुल्क 15 फीसदी से कम कर 6 फीसदी कर दिया, जिससे स्थानीय बाजारों में सोने की कीमतों में भारी गिरावट दर्ज की गई. विदेशी बाजारों में कॉमेक्स पर सोना बढ़त के साथ 2,416.40 डॉलर प्रति औंस कारोबार कर रहा था.

अग्रवाल ने कहा कि दोनों खानों का निजीकरण तीन शर्तों पर होना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘सबसे पहली शर्त कोई छंटनी नहीं होनी चाहिए. दूसरी शर्त में कर्मचारियों को कुछ शेयर मिलने चाहिए. तीसरी शर्त में यह होना चाहिए कि इसे वैसे ही होना चाहिए जैसे यह परिसंपत्तियों को अलग-अलग भागों में न बांटी जाए. भले ही राज्य सरकारों के पास शेयर हो, लेकिन केंद्र सरकार को अपनी हिस्सेदारी बेचनी होगी. इसे हासिल करने वाली कंपनी राज्य सरकार को मनाने और काम करने में सक्षम है.’

अग्रवाल ने देश में तांबे की एकमात्र कंपनी हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड में भी सरकारी हिस्सेदारी बेचने की सिफारिश की है. उन्होंने कहा, ‘यहां भी सोने की खदानों जैसी ही स्थिति है.’ अग्रवाल ने कहा, ‘सोने और तांबे के आयात में 10 फीसदी की कमी से विदेशी मुद्रा में 6.5 अरब डॉलर की बचत हो सकती है और इससे सरकार को 3,500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त योगदान मिल सकता है तथा कम से कम 25 हजार नौकरियां भी पैदा हो सकती हैं.’ बजट के बाद शीर्ष सरकारी अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि सरकार की रणनीति निजीकरण से इतर है और इसका उद्देश्य अब सरकारी कंपनियों का मूल्य निर्माण करना है.

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