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स्कूली बच्ची ने साल भर पहले केरल के वायनाड में मची तबाही पर लिखी थी कहानी और हो गया वैसा

कहते हैं कभी-कभी बच्चे कुछ ऐसा लिख या कह देते हैं जो आगे चलकर सही हो जाता है. केरल के वायनाड में मची तबाही के बीच ऐसा ही एक संयोग सामने आया है. इसमें दावा किया गया है कि एक स्कूली बच्ची ने साल भर पहले ही इस घटना के बारे में लिख दिया था. बताया जाता है कि आठवीं में पढ़ने वाली इस बच्ची ने पिछले साल एक कहानी लिखी थी. इस कहानी में उसने जिस तरह से घटनाओं के बारे में लिखा था, लगभग वैसे ही हालात वायनाड में बन गए हैं. यहां तक की स्कूल की मैगजीन में भी इस कहानी को पब्लिश किया गया था. अंतर सिर्फ इतना है कि कहानी में सुखांत होता है, लेकिन हकीकत में ट्रैजेडी है. बता दें कि वायनाड में हालात लगातार खराब हैं. यहां पर मरने वालों की संख्या बढ़कर 308 हो चुकी है. वहीं, मौसम विभाग का कहना है कि हालात अभी भी काबू में नहीं हैं.

क्या लिखी थी कहानी

यह कहानी आठवीं क्लास में पढ़ने वाला लाया ने लिखी थी. वह वायनाड के चूरामाला स्थित वेलारमाला के सरकारी हायर सेकंडरी स्कूल में पढ़ती है. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक लाया की यह कहानी पिछले साल स्कूल मैगजीन में भी छपी थी. कहानी में लाया ने एक लड़की के बारे में लिखा था जो एक झरने में डूब जाती है. डूबने से उसकी मौत हो जाती है और मरने के बाद वह एक चिड़िया के रूप में गांव में वापस आती है. लाया की कहानी में चिड़िया गांव के बच्चों से कहती है, ‘बच्चों, इस गांव से भाग जाओ. यहां बहुत बड़ा खतरा आने वाला है.’ इसके बाद बच्चे गांव से निकलकर भागने लगते हैं. जब वो मुड़कर पीछे देखते हैं तो पहाड़ के ऊपर से बारिश का पानी बहुत तेजी से बहता चला आ रहा है. कहानी में इसके बाद वह चिड़िया एक खूबसूरत लड़की में बदल जाती है. जो गांव वालों को बचाने आई थी, ताकि उसकी तरह कहीं यह लोग भी न डूब जाएं.

अपने पिता को भी खो दिया

फिलहाल चूरामाला लैंडस्लाइड की तबाही में डूबा हुआ है. लाया की कहानी के विपरीत यहां माहौल बहुत ज्यादा तकलीफदेह है. लाया ने अपने पिता लेनिन को भी खो दिया है. लाया के स्कूल के 497 छात्रों में से 32 की मौत हो चुकी है. वहीं, दो छात्रों ने अपने पिता और भाई-बहनों को भी खोया है. स्कूल भी बुरी तरह से बर्बाद हो चुका है. पानी के तेज बहाव स्कूल के मैदान और इसकी इमारतों को बुरी तरह से तबाह कर दिया है.

स्कूल के हेडमास्टर, वी उन्नीकृष्णन और उनके साथियों को लगता है कि वह बाल-बाल बच गए. उन्होंने बताया कि हम पांच अध्यापक चूरामाला में एक किराए के कमरे में रह रहे हैं. उन्होंने बताया कि एक हफ्ते पहले जब बारिश शुरू हुई तो हम स्कूल में ही रुकने वाले थे. लेकिन फिर हम घर लौट गए. यह अच्छा रहा क्योंकि लैंडस्लाइड में स्कूल को नुकसान पहुंचा. अगर हम वहां रुके होते तो हम भी मिट्टी में मिल गए गए होते.

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