हाईकोर्ट ने कहा- जिन एनजीओ के पास नेशनल ट्रस्ट सर्टिफिकेट नहीं, उन्हें बंद कर देना चाहिए
बिलासपुर: छत्तीसगढ़ के गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) में बच्चों की मौत के मामले में हाईकोर्ट ने कहा है कि सरकार की जिम्मेदारी है कि इन सभी घटनाओं को रोके. बेसहारा बच्चों, बुजुर्गों के लिए बेहतर व्यवस्था हो यह सुनिश्चित करना जरूरी है. एनजीओ को काम देने की जगह सरकार खुद जगह तलाश कर भवन बनाए और उसका संचालन करे. मामले की अगली सुनवाई 3 सितंबर को होगी.
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि जिन एनजीओ के पास केन्द्र सरकार द्वारा जारी नेशनल ट्रस्ट सर्टिफिकेट नहीं है उन्हें बंद कर देना चाहिए. उल्लेखनीय है कि इस मुद्दे पर जनहित याचिका दायर कर कहा गया है कि 2014 से अब तक अलग-अलग एनजीओ में 8 बच्चों की भूख की वजह से मौत हो चुकी है.
करोड़ों रुपए अनुदान, फिर भी बदहाली : रायपुर की संस्था कोपल वाणी चाइल्ड वेलफेयर ने वकील जेके गुप्ता और देवर्षि ठाकुर के माध्यम से हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है. इसमें बताया गया है कि राज्य शासन की ओर से समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत सामाजिक संस्थाओं को अनुदान दिया जाता है. वह संस्था जो निराश्रित बच्चों के लिए काम कर रही हैं. उनके लिए अलग से घरौंदा योजना प्रारंभ की गई थी. शासन की ओर से इन संस्थाओं को करोड़ों रुपए का अनुदान दिया जा रहा है. पीतांबरा संस्था समेत 4 संस्थाओं को 9.76 करोड़ रुपए दिए गए.
शकायत के बाद भी कार्रवाई नहीं : पीतांबरा और कुछ अन्य संस्थाओं में 2014 से अब तक अलग-अलग 8 बच्चों की मौत हो चुकी है. इनमें से जब 2017 में एक घटना पीतांबरा में हुई तो इसकी शिकायत की गई. खुद समाज कल्याण विभाग के सचिव ने कहा था कि एफआईआर होनी चाहिए. मामले में ईडी से भी शिकायत हुई थी. बड़ी रकम की हेर-फेर का मामला था. संस्था कोपल वाणी की ओर से कोर्ट में कहा गया कि शासन के अनुदान का दुरुपयोग हो रहा है.
एनजीओ की जगह सरकार खुद चलाए घरौंदा
याचिकाकर्ता संस्था की ओर से कहा गया, जो लोग इस क्षेत्र में बेहतर काम कर रहे हैं उन्हें कोई सहायता नहीं मिल पाती है. इतनी बड़ी रकम होने के बाद भी भूख से बच्चों की यह स्थिति भयावह है. हाईकोर्ट ने मामले में राज्य सरकार, केंद्र सरकार और प्रवर्तन निदेशालय से जवाब मांगा था. शासन की ओर से कहा गया वह जमीन तलाश रहे हैं जिसमें किराए के भवन में इन घरौंदा सेंटर को चलाया जा सके. कोर्ट ने कहा कि एनजीओ की जगह सरकार इन संस्थाओं को खुद चलाए तो बेहतर होगा. सरकार के पास कई एकड़ सरकारी जमीन हर जिले में है. इसमें से जगह आबंटित की जा सकती है.