सिर्फ ये कहकर नौकरी से नहीं हटा सकते कि सेवाओं की आवश्यकता नहीं
बिलासपुर: हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि नियमित और स्वीकृत पद पर नियुक्त परिवीक्षाधीन कर्मचारी को केवल यह कहकर सेवाओं से नहीं हटाया जा सकता कि उसकी सेवाओं की आवश्यकता नहीं है. हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि हटाई गई अवधि के बकाया वेतन का 50 प्रतिशत कर्मचारी को दिया जाए. कोर्ट ने बकाया वेतन के साथ सेवा में बहाल करने का भी आदेश जारी किया है.
अभनपुर निवासी दिशान सिंह डहरिया को स्टेनोग्राफर के पद पर जिला एवं सत्र न्यायालय दुर्ग में नियुक्त किया गया था. आफिस कार्यों में लापरवाही और अनुशासनहीनता के मामले में दिसंबर 2019 को उसे पद से हटा दिया गया. इसमें कहा गया कि अपने खिलाफ की गई कार्रवाई की शिकायत अपीलकर्ता ने सीधे हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को भेज दी. इस मामले में नोटिस के बाद सही जवाब नहीं दिया जा सका. जारी आदेश में कहा गया कि इस आधार पर सेवाओं से हटाया जा रहा है कि याचिकाकर्ता की सेवाओं की आवश्यकता नहीं है और एक महीने के वेतन का उसे भुगतान किया गया.
कार्रवाई को दी थी हाईकोर्ट में चुनौती
याचिकाकर्ता ने हटाने के आदेश पर आपत्ति जताते हुए हाईकोर्ट में अपील की. याचिका में कहा गया कि बिना जांच के उसे हटा दिया गया है जो कि गलत है. सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि अस्थायी कर्मचारी के साथ परिवीक्षाधीन कर्मचारी को भी कार्रवाई के पहले सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता बकाया वेतन का 50 प्रतिशत पाने का हकदार है. कोर्ट ने बकाया वेतन के साथ सेवा में बहाल करने का आदेश जारी किया है.