हिंसा के चलते हिंदुओं की आबादी 30 से घटकर आठ फीसदी हुई
नई दिल्ली:बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद हिंसा और आगजनी की घटनाएं सामने आ रही हैं. पीएम शेख हसीना को लेकर शुरू हुआ विवाद अब हिंदुओं तक पहुंच गया है.
यहां अवामी लीग पार्टी के कई नेताओं को जिंदा जला दिया गया, जिसमें हिंदू नेता भी शामिल थे. दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति खराब हुई है. बांग्लादेश सरकार की ओर से जारी जनगणना के अनुसार, देश में 91 फीसदी आबादी मुस्लिम जनसंख्या की है, जबकि आठ फीसदी आबादी हिंदुओं की है. 2 फीसदी से कम आबादी अन्य अल्पसंख्यक समुदाय की है.
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की आजादी के बाद 1947 में यहां हिंदुओं की आबादी लगभग 30 फीसदी थी, जो घटकर लगभग 8.54 फीसदी रह गई. बांग्लादेश की न्यूज वेबसाइट डेली स्टार की रिपोर्ट में बताया गया कि 2022 में यहां आबादी साढ़े सोलह करोड़ से कुछ ज्यादा थी. इसमें हिंदुओं की संख्या करीब 1 करोड़, 31 लाख है. धार्मिक उत्पीड़न और आर्थिक तौर पर मजूबत होने से इनकी संख्या में गिरावट हो रही है.
बंटवारे के बाद से ही हिंसा
साल 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद से ही पूर्वी पाकिस्तान में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा बढ़ गई. बंटवारे के समय जो हिंदू 30 फीसदी थे, वे 1960-62 तक घटकर 22 फीसदी रह गए. पाकिस्तान ने काफी समय तक अल्पसंख्यकों पर अत्याचार किया. वर्ष 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के समय भी पाक सेना ने हिंदुओं के गांव के गांव उजाड़ दिए थे. बताया जाता है कि इस दौरान 30 लाख से ज्यादा हिंदुओं को मार दिया गया या देश से भगा दिया गया. इस वजह से यहां हिंदू आबादी 13.5 फीसदी तक रह गई. 1971 में स्वतंत्रत संग्राम के दौरान लगभग 2.8 मिलियन लोगों की हत्या कर दी गई और 10 मिलियन बेसहारा हो गए . इन्हें पाकिस्तानी सेना द्वारा शरणार्थी बना दिया गया. बांग्लादेश में हिंदुओं को उनकी आस्था के लिए लगातार निशाना बनाया है.
संपत्ति कानून से भूमिहीन
बांग्लादेश में भेदभाव और सांप्रदायिक हिंसा के कारण वे यहां दूसरे दर्जे के नागरिक के रूप में निवास कर रहे हैं. वहीं संपत्ति अधिनियम जैसे कानूनों के कारण लगभग 60 फीसदी हिंदू भूमिहीन हो गए. रिपोर्ट में कहा गया कि 1964 के बाद से लगभग 11.3 प्रतिशत हिंदुओं ने बांग्लादेश छोड़ दिया.