कब है कोजागरी पूजा? शुभ मुहूर्त और पूजाविधि
कोजागरी पूजा का दिन मां लक्ष्मी की पूजा-आराधना के लिए समर्पित माना जाता है. यह पर्व मुख्य रूप से उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और असम में अश्विन पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. द्रिक पंचांग के अनुसार, इस साल 16 अक्टूबर को कोजागरी पूजा है. इस दिन को कोजागरी पूर्णिमा या शरद पूर्णिमा भी कहते हैं. धार्मिक मान्यता है कि कोजागरी पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी माता की विधि-विधान से पूजा करने पर साधक को आर्थिक समस्याओं से छुटकारा मिलता है. कहा जाता है कि कोजागरी पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी धरती लोक पर भ्रमण करती हैं. इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा से मां अपने भक्तों को धन, सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती है. आइए जानते हैं कोजागरी पूजा की सही डेट, मुहूर्त और पूजाविधि…
कोजागरी पूर्णिमा कब है?
द्रिक पंचांग के अनुसार, अश्विन माह की पूर्णिमा तिथि का आरंभ 16 अक्टूबर को रात 08 बजकर 40 मिनट पर होगा और 17 अक्टूबर 2024 को 04 बजकर 55 मिनट पर समापन होगा. वहीं, 16 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा या कोजागरी पूजा मनाया जाएगा.
कोजागरी पूजा के मुहूर्त : इस दिन कोजागरी पूजा का निशिता काल मुहूर्त 16 अक्टूबर की रात 11 बजकर 42 मिनट से लेकर रात 12 बजकर 32 मिनट तक रहेगा.
चंद्रोदय का समय : कोजागरी पूजा के दिन शाम 05 बजकर 05 मिनट पर चंद्रोदय हो जाएगा.
शरद पूर्णिमा के दिन चंद्र दर्शन- शरद पूर्णिमा व्रत में चंद्र दर्शन करने के बाद व्रत का पारण किया जाता है. शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय शाम 05 बजकर 04 मिनट पर होगा.
शरद पूर्णिमा के दिन बनाई जाती है खीर- मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा से निकलने वाली किरणें अमृत समान होती है. यही कारण है कि इस दिन चंद्रमा की रोशनी में खीर रखी जाती है. ताकि खीर में चंद्रमा की किरणें पड़ें और उसमें अमृत का प्रभाव हो सके.
कोजागरी पूजा की विधि :
कोजागरी पूजा के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि करके साफ कपड़े पहनें. इसके बाद तांबे के लोटे में लाल फूल, जल और अक्षत डालकर सूर्यदेव को जल अऱ्पित करें. मां लक्ष्मी की पूजा के लिए एक छोटी चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और इस पर मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें. इसके बाद मां लक्ष्मी को फल,लाल फूल, सिंदूर, कुमकुम, अक्षत,रोली और खीर का भोग लगाएं. माता रानी को लौंग,इलायची,एक सुपारी और बताशा चढ़ाएं. इसके बाद उनकी विधिवत पूजा करें और मंत्रों का जाप करें और मां लक्ष्मी की आरती उतारें. शाम को चंद्रोदय के बाद जल अर्घ्य दें और चंद्रेदव की पूजा करें.