जानें क्यों मनाते हैं देव दिवाली ,शाम की पूजा का शुभ मुहूर्त 2 घंटे 37 मिनट का
कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है. मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर देवताओं को स्वर्ग पुनः प्रदान किया और इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु ने मत्स्य अवतार धारण कर प्रलय काल में धरती पर जीवन की रक्षा की. इस दिन को देव दिवाली नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इस दिन देवता धरती पर विराजते हैं. दीपक को प्रज्वलित करके उचित स्थान पर रखना दीपदान कहलाता है. देव दिवाली के दिन देव स्थान परदीपक लगानेको दीपदान कहा जाता है.
देव दिवाली पूजन शुभ मुहुर्त- पूर्णिमा तिथि 15 नवंबर को सुबह 06 बजकर 19 मिनट पर प्रारंभ हो गई है और 16 नवंबर को सुबह 02 बजकर 58 मिनट पर समाप्त होगी. प्रदोष काल देव दिवाली का मुहूर्त शाम 05 बजकर 10 मिनट से शाम 07 बजकर 47 मिनट तक रहेगा. पूजन की कुल अवधि 02 घंटे 37 मिनट की है.
कृतिका नक्षत्र में पर्व-ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा 15 नवंबर को प्रात 06 20 बजे से रात 02 59 बजे तक रहेगी. भरणी नक्षत्र 14 नवंबर को मध्यरात्रि के बाद 12:33 बजे से लग जाएगा जो 15 नवंबर की रात 09:55 बजे तक रहेगा. फिर कृतिका नक्षत्र आरंभ होगा.
देव दिवाली से जुड़े हैं तीन पौराणिक प्रसंग- देव दीपावली के उत्सव से तीन पौराणिक प्रसंग जुड़े हैं. यह प्रसंग शिव, पार्वती और विष्णु पर केंद्रित हैं. पौराणिक मान्यता यह है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही देवाधिदेव महादेव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था. इसी दिन दुर्गारूपिणी पार्वती ने भी महिषासुर का वध करने के लिए शक्ति अर्जित की थी. इसी दिन सायंकाल गोधूली बेला में भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार लिया था. इन तीनों ही अवसरों पर देवताओं ने काशी में दीपावली मनाई थी. भृगु संहिता विशेषज्ञ पं. वेदमूर्ति शास्त्री के अनुसार इस दिन देवाधिदेव महादेव और भगवान विष्णु के साथ ही शिवपुत्र कार्तिकेय की पूजा का विशेष महात्म्य है.