
आज के डिजिटल युग में स्मार्टफोन बच्चों और किशोरों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है. स्मार्टफोन का बढ़ता इस्तेमाल बच्चों को केवल डिजिटल दुनिया में सीमित कर रहा है, जिससे वे अपने रिश्तों को नजरअंदाज कर रहे हैं.
प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिका प्लस वन में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, बढ़ता स्क्रीन टाइम बच्चों की जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है. बच्चे परिवारों और दोस्तों से दूर हो रहे हैं. स्मार्टफोन के अधिक उपयोग से बच्चों में शारीरिक के साथ मानसिक स्वास्थ्य में भी गिरावट आई है.
सामान्य गतिविधियों में व्यवधान : बच्चों में प्रॉब्लेमेटिक स्मार्टफोन उपयोग (पीएसयू) की स्थिति देखी जाने लगी है. यह तब होता है जब स्मार्टफोन का उपयोग इतना बढ़ जाता है कि यह बच्चों के पढ़ाई, नींद और रिश्तों में बाधा डालने लगता है.
ये हैं लक्षण
● स्मार्टफोन को बार-बार चेक करना
● पढ़ाई या नींद में बाधा आना
● बिना फोन के गुस्से या चिड़चिड़ापन का अनुभव
बढ़ा फोन का उपयोग
● 2012 में बच्चों में स्मार्टफोन रखने वालों की संख्या 62 फीसदी थी
● 2021 तक यह आंकड़ा 94 फीसदी तक पहुंच गया
● 2018 में 37 फीसदी बच्चे सप्ताहांत पर तीन घंटे उपयोग करते थे फोन
● 2024 तक यह आंकड़ा 73 फीसदी तक पहुंच गया
पीएसयू में वृद्धि
● 23 फीसदी थी 2019 में बच्चों में पीएसयू की संभावना
● 30 फीसदी हो गई कोरोना महामारी के दौरान यह बढ़कर
● लड़कियों में पीएसयू स्कोर लड़कों की तुलना में ज्यादा
● जिन बच्चों का पीएसयू स्कोर ज्यादा था, उनकी जीवन गुणवत्ता खराब