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आप भी देख सकते हैं RBI का खजाना, गोल्ड रिजर्व ने सोने की तिजोरियों से आम जनता को कराया रूबरू

अब आप भी आरबीआईRBI के खजाने को देख सकते हैं। यकीन नहीं हो रहा न? यह सच है कि आम जनता अब आरबीआई के खजाने का दीदार कर सकती है। रियल न सही, लेकन रील में तो असली खजाना देख ही सकती है। दरअसल, आरबीआई ने एक टीवी चैनल के साथ मिलकर खास डॉक्युमेंट्री जारी की है। इसमें पहली बार आरबीआई ने अपनी सोने की तिजोरियों से आम जनता को रूबरू कराया है। इन तिजोरियों में आरबीआई के स्‍वर्ण भंडार में रखी सोने की एक ईंट का भार 12.5 किलोग्राम है और इसकी कीमत लगभग 12.25 करोड़ रुपये है।

RBI ने अपने कामकाज और भूमिकाओं को जनता के सामने लाने के लिए यह डॉक्युमेंट्र बनाई है। इसके कुल पांच एपिसोड हैं। इसमें बताया गया है कि वर्ष 1991 के आर्थिक संकट के बाद सोने का भंडार कई गुणा बढ़ा चुका है और वर्तमान में यह लगभग 870 टन पहुंच गया है।

आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, 20 जून को समाप्त सप्ताह में स्वर्ण भंडार का कुल मूल्य 85.74 अरब डॉलर है। इस स्वर्ण भंडार को काफी सुरक्षित स्थानों पर रखा है। इन स्वर्ण तिजोरियों तक बहुत कम लोगों की पहुंच है।

सोने की चमक हमेशा बनी रहेगी

आरबीआई अधिकारी के अनुसार, सोना केवल धातु नहीं बल्कि देश की ताकत है। देश बनते रहेंगे, बिगड़ते रहेंगे। अर्थव्यवस्था में उतार- चढ़ाव होता रहेगा, लेकिन सोना हमेशा अपना मूल्य बनाए रखेगा।

भारत करेंसी नोट का सबसे बड़ा उत्‍पादक

आरबीआई ने यह भी बताया कि हमारा देश दुनिया में करेंसी नोट के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है। जहां अमेरिका में यह लगभग 5,000 करोड़ यूनिट, यूरोप में 2,900 करोड़ यूनिट है, वहीं भारत में यह 13,000 करोड़ यूनिट (दो मई, 2025 की स्थिति के अनुसार चलन में कुल नोट का मूल्य 38.1 लाख करोड़ रुपये) पहुंच चुका है। आज करेंसी नोट की छपाई में इस्तेमाल होने वाली मशीन, इंक से लेकर सभी प्रकार की चीजों का विनिर्माण भारत में ही होता है।”

इन जगहों पर हैं कारखाने

डॉक्युमेंट्री मे कहा गया है कि आरबीआई ने अपनी करेंसी के लिए कागज तैयार करने के लिए देवास (मध्य प्रदेश), सालबोनी (पश्चिम बंगाल), नासिक (महाराष्ट्र) और मैसूर (कर्नाटक) में कारखाने लगाए हैं। आज जो भी करेंसी में कागज का इस्‍तेमाल किया जा रहा है, वह भारत में ही बन रहा है। वर्तमान में करेंसी नोट में इस्तेमाल होने वाले कागज के अलावा छपाई, इंक समेत सभी चीजें घरेलू स्रोत से ही ली जा रही हैं, जो मेक इन इंडिया का अच्छा उदाहरण है। पहले, आयातित कागज से नोटों की छपाई होती थी।

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