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जबरन धर्मांतरण है ‘गंभीर मुद्दा’, सरकार अपना रुख साफ करे- सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लोगों को डरा धमका कर किया जाने वाला धर्मांतरण गम्भीर मसला है. यह न केवल लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा है. इसको लेकर सरकार को अपना रुख साफ करना ही चाहिए.

जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने कहा कि संविधान सबको अपना धर्म चुनने और स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन की आजादी देता है लेकिन ये धर्म परिवर्तन जोर जबरदस्ती से नहीं हो सकता. कोर्ट ने सरकार से 22 नवंबर तक जवाब दाखिल करने को कहा है.

कोर्ट में दायर याचिका में की गई मांग
अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर याचिका में मांग की गई है कि लोगों को डरा धमका कर, प्रलोभन देकर और काला जादू /अंधविश्वास का सहारा लेकर हो रहे धर्मांतरण को रोकने के लिए कानून बनाया जाना चाहिए. याचिका के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में तो कई संस्थाएं बड़े पैमाने पर धर्मांतरण में लगी हैं. विदेश से उन्हें इसके लिए बाकायदा पैसा मिल रहा है. ये संस्थाएं ग्रामीण इलाकों में रह रहे वंचित तबके के लोगों को ख़ासकर अनुसूचित जाति/ जनजाति के लोगों का धर्म परिवर्तन करा रही है.

SG ने भी लालच से धर्मपरिवर्तन की दलील को माना
सुनवाई के दौरान सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मध्यप्रदेश, ओडिसा जैसे कई राज्यो में धर्मांतरण को रोकने के लिए कानून है. इन कानून की वैधता को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा है. तुषार मेहता ने कहा कि ऐसे भी मामले हैं, जब चावल और गेहूं का लालच देकर लोगों का धर्मान्तरण किया गया. आदिवासी इलाकों में तो ये आम बात है.

कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा
कोर्ट ने SG तुषार मेहता से कहा कि इन सबको देखते हुए आपको दखल की ज़रूरत है. आप अपना रुख साफ कीजिए. सरकार जवाब दाखिल कर बताए कि ऐसे धर्मांतरण को रोकने के लिए क्या कदम उठाने वाली है. संविधान स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन की इजाज़त देता है पर जबरन धर्मांतरण की इजाज़त नहीं है. कोर्ट ने 22 नवंबर तक सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा है. अगली सुनवाई 28 नवंबर को होगी.

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