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संस्कृत विलुप्त होने की कगार पर

स्वतंत्र राष्ट्र. अपना देश. भारतीय संस्कृति. उसके बाद भी अपने ही देश में संस्कृत बेगानी है. 141 करोड़ की आबादी वाले देश में मात्र 24821 लोग ही संस्कृत बोलते हैं. जबकि पांच करोड़ 77 लाख लोग उर्दू बोलते हैं. यानी यहां संस्कृत बोलने वालों की संख्या ऊर्दू की अपेक्षा मात्र 0.04 फीसदी ही है.

ये खुलासा एक आरटीआई में पूछे गए सवाल में गृह मंत्रालय के जनगणना आयुक्त कार्यालय द्वारा दिए गए जवाब में हुआ है. पूरे देश में मात्र 24821 लोग ही संस्कृत बोलते हैं. जाहिर है कि संस्कृत बोलने वाले प्रकांड विद्वान ही होंगे. इसके अलावा आम लोग संस्कृत भाषा को नहीं बोलते हैं. वहीं उर्दू बोलने वालों ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं. उर्दू बोलने वालों की संख्या इतनी ज्यादा है कि संस्कृत बोलने वाले मात्र 0.04 फीसदी ही हैं. ये आंकड़ा वर्ष 2011 की जनगणना में दर्ज है. संस्कृत और उर्दू भाषा को सिखाने के लिए शिक्षण संस्थाएं संचालित हैं. भारत में 4 हजार गुरुकुल हैं.

उर्दू और संस्कृत बोलने वालों की संख्या पूछी थी

डॉ. देवाशीष भट्टाचार्य ने गृह मंत्रालय के जनगणना आयुक्त कार्यालय में सात जून को आरटीआई के माध्यम से देश में उर्दू और संस्कृत बोलने वालों की संख्या पूछी गई थी. सवालों में गुरुकुल और मदरसों की संख्या भी पूछा गई थी. इस कार्यालय के भाष प्रभाग के वरिष्ठ शोध अधिकारी और केंद्रीय सूचना अधिकारी ने अपने दिए गए जवाब में बताया कि देश में पांच करोड़ 77 लाख 263 लोग उर्दू बोलते हैं. अन्य सवालों के जवाब दिए ही नहीं.

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