भक्त की इच्छा पूर्ति के लिए शयन करने जाते हैं श्रीहरि

शिव महापुराण के अनुसार दैत्यों का राजा दंभ विष्णु भक्त था. विवाह के कई वर्षों पश्चात भी जब उसके यहां संतान नहीं हुई तो उसने शुक्राचार्य को अपना गुरु बनाकर ‘श्री कृष्ण’ मंत्र प्राप्त किया. इस मंत्र को पाने के पश्चात उसने पुष्कर सरोवर में घोर तप किया. उसके तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे संतान प्राप्ति का वरदान दे दिया. भगवान विष्णु के वरदान से दंभ को पुत्र हुआ. उसका नाम शंखचूड़ रखा गया. बड़ा होने पर उसने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए पुष्कर में घोर तपस्या की. उसके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे वरदान मांगने को कहा. शंखचूड़ ने ब्रह्मा जी से कहा कि उसे देवता भी नहीं मार पाएं और वह अजर-अमर रहे. ब्रह्मा जी ने उससे कहा कि तुम अजर-अमर तो नहीं हो सकते, लेकिन तुम्हारी मृत्यु विशेष परिस्थितियों में अत्यंत कठिनाई से होगी.

वरदान पाकर शंखचूड़ के अत्याचार बढ़ने लगे. हारकर सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गए और शंखचूड़ के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की. तब, विष्णु शंकर जी के पास गए. भगवान विष्णु की सहायता से भगवान शंकर ने शंखचूड़ का वध किया. जिस दिन शंखचूड़ का वध हुआ था, उस दिन आषाढ़ मास की एकादशी थी. शंखचूड़ की मृत्यु के पश्चात भगवान विष्णु शयन करने के लिए क्षीरसागर चले गए. भगवान विष्णु के शयन के लिए जाने के कारण इसे हरि शयनी एकादशी और देव शयनी एकादशी कहा गया. भगवान विष्णु के शयन के लिए जाने के कारण सृष्टि के पालन का कार्य भगवान शंकर ने अपने ऊपर ले लिया. देव शयनी एकादशी के बाद सावन माह शुरू हो जाता है, जिसमें शिव पूजा का विधान है. यही समय चातुर्मास का भी होता है, जिसमें साधु-संन्यासी एक स्थान पर ही रहते हैं. ऐसी पौराणिक मान्यता है कि चातुर्मास के दौरान समस्त तीर्थ ब्रज में आ जाते हैं इसलिए इस समय ब्रज की यात्रा करना बहुत ही पुण्यकारी और फलदायी माना गया है.
हरि शयनी एकादशी के संबंध में एक कथा और है. राजा बलि ने जब वामन अवतार विष्णु को अपना सर्वस्व दान कर दिया तो भगवान ने उन्हें पाताल लोक में रहने को कहा और वरदान मांगने के लिए कहा. तब, राजा बलि ने उनसे अपने यहां निवास करने करने के लिए कहा. भगवान ने बलि से कहा कि वह सदा के लिए तो नहीं, लेकिन प्रति वर्ष कुछ समय (चातुर्मास का समय) के लिए उसके यहां आया करेंगे. तब से भगवान विष्णु राजा बलि को दिए गए वचन का पालन करने के लिए प्रति वर्ष चातुर्मास में पाताल लोक में शयन करने के लिए जाते हैं.