छत्तीसगढ़ में मंगलवार को हुए पहले चरण के मतदान के बाद कांग्रेस-भाजपा दोनों अपने-अपने दावे कर रही हैं. मतदान में वृद्धि को पार्टी बड़ी जीत का संकेत मान रही है. हालांकि, इसके बावजूद कांग्रेस कोई जोखिम नहीं लेना चाहती. इसलिए, कांग्रेस दूसरे चरण की सीट पर प्रचार को आक्रामक बनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा वोटरों को बूथ तक पहुंचाने की रणनीति पर काम कर रही है.
अपने-अपने दावे पहले चरण में हुए जबरदस्त मतदान के बाद भाजपा का दावा है कि मतदान प्रतिशत में वृद्धि बदलाव का संकेत है. वहीं, कांग्रेस की दलील है कि अधिक मतदान के जरिए वह इस बार 75 से ज्यादा सीट जीतकर दोबारा सरकार बनाएगी. छत्तीसगढ़ में विधानसभा की कुल 90 सीट हैं. मत प्रतिशत में वृद्धि या कमी हमेशा बदलाव के संकेत नहीं होते हैं.
वर्ष 2008 के चुनाव में 70.61 फीसदी मतदान हुआ था. इसके बाद 2013 में मतदान में करीब सात प्रतिशत की वृद्धि हुई, पर तत्कालीन सीएम रमन सिंह की सरकार बरकरार रही. वहीं, 2018 में मतदान में आधा फीसदी कमी आई और सिर्फ 76.88 मतदान हुआ. मतदान प्रतिशत में कमी के बावजूद सत्ता परिवर्तन हुआ और कांग्रेस 68 सीट जीतने में सफल रही. जबकि भाजपा को सिर्फ 15 सीट मिली. इस सबके बावजूद कांग्रेस कोई जोखिम नहीं लेना चाहती. इसलिए, कांग्रेस दूसरे चरण की सीट पर प्रचार को और आक्रामक बनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं को बूथ तक पहुंचाने की रणनीति पर काम कर रही है.
2018 में इन 20 सीट पर 76.42 मतदान हुआ था. चुनाव में कांग्रेस को 17, भाजपा को दो और अन्य को एक सीट मिली थी. बाद में उपचुनाव के बाद कांग्रेस के पास इस वक्त 19 सीट हैं, जबकि भाजपा के पास एक सीट. बस्तर की 12 सीट पर कांग्रेस अपनी जीत दर्ज करने में सफल रही थी.
दंतेवाड़ा, सुकमा में ज्यादा वोट पड़े नक्सल प्रभावित क्षेत्र दंतेवाड़ा, सुकमा व बीजापुर में इस बार 2018 के मुकाबले ज्यादा वोट पड़े. दंतेवाड़ा में पिछली बार के मुकाबले 13 और कोंटा में नौ फीसदी ज्यादा वोट पड़े हैं. हालांकि, बीजापुर में पिछले चुनाव की तरह इस बार भी 46 फीसदी मतदान हुआ. ऐसे में उम्मीद है कि दूसरे चरण में भी मतदान अधिक होगा.
बस्तर में सबसे ज्यादा 84.65 मतदान
प्रदेश की 20 सीट पर हुए पहले चरण के चुनाव में 76.47 फीसदी मतदान हुआ है. दिलचस्प बात यह है कि पहले चरण की नौ सीट पर 80 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ. बस्तर में सबसे ज्यादा 84.65 फीसदी मतदान हुआ.