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एआई से नामी हस्तियों का फर्जी वीडियो बनाकर फंसा रहे शातिर

‘एआई वीडियो क्लोनिंग टूल’ साइबर शातिरों का नया हथकंडा बन गया है. देश ही नहीं विदेशों में बैठे साइबर अपराधी इसका इस्तेमाल करके लोगों को अपने जाल में फंसा रहे हैं. नामी हस्तियों के फेक वीडियो (डीपफेक) सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर पोस्ट कर लोगों से न सिर्फ आर्थिक फायदा उठा रहे हैं, बल्कि भड़काऊ भाषण वाले फेक वीडियो से समाज में नफरत फैलाने का काम भी कर रहे हैं.

कई वीआईपी के साथ ऐसा हो चुका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जुड़ा एक वीडियो भी वायरल हुआ था, जिसमें वह गरबा करते हुए दिखाई दे रहे थे. हालांकि, गनीमत रही कि प्रधानमंत्री का यह वायरल वीडियो डीप फेक नहीं था, बल्कि इनके हमशक्ल विकास महंते नाम के एक कारोबारी का था. जिसने खुद ही सोशल मीडिया पर ये बताया कि वीडियो लंदन में दिवाली मेले के एक प्रोग्राम के दौरान का है. इसके अलावा भारतीय अभिनेत्री कैटरीना कैफ और रश्मिका मंदाना भी इसकी शिकार हो चुकी हैं.

यह है एआई वीडियो क्लोनिंग टूल एआई वीडियो क्लोनिंग टूल एक प्रकार से वीडियो में हेराफेरी का एक रूप है, जहां कोई व्यक्ति किसी विशिष्ट व्यक्ति की विभिन्न छवियों को फीड करके उसमें बदलाव कर सकता है. इसके अलावा, नए व्यक्ति की लगभग एक या दो मिनट की वॉइस रिकॉर्डिंग सबमिट करके वीडियो में व्यक्ति की आवाज और शब्दों को भी बदल सकता है. वैज्ञानिक भाषा में कहा जाए तो यह सॉफ्टवेयर डीप-लर्निंग एल्गोरिदम पर आधारित होता है. इसका इस्तेमाल किसी व्यक्ति का नकली वीडियो उसके ही आवाज के ऑडियो के साथ तैयार करने के लिए किया जाता है. यह वीडियो में वॉइस ओवर, बैकग्राउंड परिवर्तन सहित ऑडियो संपादन कार्यों को आसानी से करता है.

वीडियो के साथ छेड़छाड़ कर विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर गलत इस्तेमाल करने वालों का पता लगाने का काम दिल्ली पुलिस की साइबर सेल ने शुरू भी कर दिया है. इसके लिए पुलिस एक विशेष सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर तकनीकी आधार पर यह पता लगा रही है कि वीडियो असली है या फिर इसमें किसी तरह का कोई छेड़छाड़ की गई है. ऑडियो से छेड़छाड़ का पता लगाने के लिए भी तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. नेशनल साइबर क्राइम पोर्टल पर ऐसी दर्जनों शिकायत आईं हैं. इसमें वॉइस क्लोनिंग के मामले भी शामिल हैं.

तीन साल की कैद और जुर्माने का प्रावधान

किसी बड़ी बीमारी का जड़ से इलाज करने वाली दवा की खोज करने का दावा करने वाले फेक वीडियो किसी बड़े डॉक्टर या फिर न्यूज की तरह वीडियो बनाकर उसे सोशल मीडिया पर वायरल कर रहे हैं.

स्वास्थ्य और फिटनेस क्षेत्र से जुड़ी किसी बड़ी शख्तियत के नाम पर ऐसा वीडियो तैयार कर रहे हैं, जिसमें वह मोटापा कम करने के विशेष तरीके और डोज के बारे में जनकारी दे रह हैं. ब्यूटी एक्सपर्ट के हवाले से काली त्वचा को गोरा और खूबसूरत करने, दांतों को चमकाने वाली क्रीम और गोली का आविष्कार करने वाले फेक वीडियो बनाकर पोस्ट किए जा रहे हैं.

सद्गुरु के नाम से भी फेक वीडियो बनाए थे

ईशा फाउंडेशन के सद्गुरु के नाम पर एआई वीडियो क्लोनिंग टूल से फेक वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट किया गया था. इसे लेकर फाउंडेशन से हिंदुस्तान ने संपर्क किया. फाउंडेशन की ओर से बताया गया कि 5 अक्टूबर, 2023 को एक सार्वजनिक नोटिस जारी किया गया, जिसमें इस फर्जीवाड़े का जिक्र कर लोगों से सतर्क रहने को कहा गया था. दरअसल, सद्गुरु के नाम से सूरज शर्मा, लैला राव और आमिर के नाम पर फेसबुक, इंस्टाग्राम और टेलीग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर फेक वीडियो प्रसारित हो रहे थे, जिसमें सद्गुरु के वीडियो और उनकी छवि का उपयोग किया जा रहा था. इस बारे में साइबर सेल में भी शिकायत दी थी.

किसी बडी शख्सियत के नाम पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विषयों पर एक तरफा बयान वाले ऐसे फेक वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट किए जा रहे हैं, जिससे उन देशों की कूटनीति पर इसका असर पड़ सकता है.

किसी वीआईपी, राजनेता और पार्टी के एजेंडा वाला वीडियो और भड़काऊ भाषण वाले फेक वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट किए जा रहे हैं, ताकि समाज में नफरत फैले और माहौल खराब हो.

आईटी एक्ट 2000 किसी भी इंसान को उसकी प्राइवेसी को लेकर सुरक्षा प्रदान करता है. ऐसे में अगर कोई डीप फेक वीडियो या तस्वीर किसी की मर्जी के बिना बना कर कोई कानून तोड़ता है, तो उसके खिलाफ शिकायत की जा सकती है. धारा 66डी के तहत गुनहगार पाए जाने पर उसे तीन साल तक की सजा और एक लाख तक का जुर्माना हो सकता है. आईटी एक्ट में ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की भी जिम्मेदारी तय की गई है.

ऐसे वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल

किसी घरेलू उपयोग वाले प्रोडक्ट को मार्केट में बेचने के लिए उस क्षेत्र के बड़े विशेषज्ञों के हवाले से उसकी उपयोगिता बताते हुए फेक वीडियो तैयार कर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर वायरल कर रहे हैं.

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