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गंगा के बाद ‘पाताल का पानी’ प्रदूषित हो रहा

वाराणसी. काशी में गंगा के बाद अब घाटों पर मौजूद प्राकृतिक जल स्रोत भी प्रदूषित होने लगे हैं. आम बोलचाल में इन स्रोतों से आने वाले जल को ‘पाताल का पानी’ कहा जाता है. गंगा का जल आचमन योग्य न रह जाने के बाद से ये जल स्रोत ही सैलानियों, तीर्थपुरोहित, माझियों सहित घाट पर दिन बिताने वाले लोगों की प्यास बुझाने के प्रमुख साधन रहे हैं.

कभी शिवाला से लेकर सिंधिया घाट के बीच कुल आठ जल स्रोत हुआ करते थे. उनका स्थान शिवाला घाट, चौकी घाट, राणा महल घाट, दशाश्वमेध घाट, डॉ राजेंद्र प्रसाद घाट, मानमंदिर घाट, मणिकर्णिका घाट और सिंधिया घाट है.

मात्र तीन स्रोत हैं जिनका जल अब उपयोग करने के लायक हैं. वयोवृद्ध लक्ष्मण माझी बताते हैं कि अब सिर्फ शिवाला, चौकी और राणामहल घाट स्थित स्रोत से निकलने वाला जल ही पीने योग्य रह गया है.

दो का जल प्रदूषित

घाट के दो स्रोत जिनका जल उपयोग के लायक नहीं रह गया है, वे क्रमश डॉ. राजेंद्र प्रसाद घाट और सिंधिया घाट पर हैं. दो वर्षों से भी अधिक समय से इनसे प्रदूषित जल प्रवाहित हो रहा है. कभी गंगाजल की तरह ही शुद्ध रहे इन दोनों स्रोतों के जल में मलजल मिलने लगा है.



गंगा किनारे हैं स्रोत

गंगा किनारे के तीन जल स्रोत करीब दो वर्ष पहले सूख चुके हैं जबकि दो का जल प्रदूषित हो चुका है. जो तीन जल स्रोत अपना अस्तित्व खो चुके हैं, उनमें एक दशाश्वमेध घाट पर, दूसरा मानमंदिर घाट और तीसरा मणिकर्णिका घाट पर था.

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