हिंदू मैरिज एक्ट के तहत बच्चे को भरण पोषण तब तक मिलना चाहिए, जब तक वह आर्थिक रूप से स्वतंत्र न हो जाए. दिल्ली हाईकोर्ट एक पति-पत्नी की तरफ से दाखिल क्रॉस अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी. फैमिली कोर्ट ने पत्नी को 1.15 लाख रुपये प्रति माह गुजारा और बेटे को 35 हजार रुपये प्रति माह देने की बात कही थी.
हालांकि, फैमिली कोर्ट के आदेश में यह भी कहा गया था कि यह रकम बेटे के 26 साल की आयु होने या उसके आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने तक (जो भी पहले हो) दी जानी चाहिए. साथ ही शर्त रखी थी कि बेटे को मिलने वाली 35 हजार रुपये की राशि में हर दो साल में 10 फीसदी का इजाफा होगा.
मामले की सुनवाई दिल्ली उच्च न्यायालय में जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस अमित बंसल की डिवीजन बेंच कर रही थी. उन्होंने कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 26 का मकसद बच्चे की शिक्षा के लिए भत्ता देना है और बच्चे की शिक्षा 18 साल की आयु तक पूरी नहीं होती है. कोर्ट ने कहा, ‘हमारा मानना है कि शिक्षा हासिल कर रहा बच्चा HMA की धारा 26 के तहत बालिग होने के बाद भी गुजारा पाने का हकदार है और तब तक है जब तक उसकी शिक्षा पूरी नहीं हो जाती और आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं हो जाता.’
बेंच का कहना है कि 18 साल की उम्र तक ज्यादा से ज्यादा बच्चा हाई स्कूल ही पास कर पाता है और आगे की पढ़ाई के लिए कॉलेज या यूनिवर्सिटी देखता है. बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट ने यह भी कहा कि तलाक याचिका वापस लेने के बाद भी फैमिली कोर्ट की भूमिका खत्म नहीं हो जाती है और वह हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 24 और 26 के तहत दाखिल आवेदनों पर फैसला ले सकता है.