मौन होकर पार उतर जाने का अवसर है मौनी अमावस्या
मौनी अमावस्या सर्दियों की संक्रांति के बाद दूसरी या महाशिवरात्रि से पहले वाली अमावस्या है. हमारे देश के किसानों को भी आमतौर पर पता है कि अमावस्या या अमावस्या के दौरान, बीज का अंकुरण और पौधों की वृद्धि धीमी हो जाती है. एक पौधे में रस को ऊपर तक पहुंचने के लिए एक कठिन कार्य का सामना करना पड़ता है और ऐसा ही इनसान के साथ भी होता है, जिसकी रीढ़ सीधी होती है. इन विशेष तीन महीनों के दौरान संक्रांति से महाशिवरात्रि तक उत्तरायण में पूर्णिमा और अमावस्या दोनों का प्रभाव बढ़ा हुआ होता है. यौगिक परंपराओं में प्रकृति द्वारा दी जा रही इस सहायता का लाभ उठाने की कई प्रक्रियाएं हैं. इनमें से एक है मौनी से महाशिवरात्रि तक मौन रहना. इस अवधि के दौरान सभी जल-निकायों और जल-भंवरों पर बहुत प्रभाव पड़ता है. यह न भूलें कि हमारे शरीर में सबसे अंतरंग जल-निकाय है, जिसे हम जानते हैं कि यह 70 प्रतिशत से अधिक पानी है.
सौर और चंद्र प्रणाली के चक्र मानव अनुभव में समय की मूल अवधारणा हैं. या तो समय के चक्रों पर सवार होना या समय के अंतहीन चक्रों में फंस जाना, यही वह विकल्प है, जो किसी को चुनना होता है. यह समय और दिन उससे पार जाने का एक शानदार अवसर प्रदान करता है.
अंग्रेजी शब्द ‘साइलेंस’ वास्तव में बहुत कुछ नहीं कहता है. संस्कृत भाषा में मौन के लिए कई शब्द हैं. ‘मौन’ और ‘निशब्द’ दो महत्वपूर्ण अर्थ है— मौन, जैसा कि हम आमतौर पर जानते हैं- आप बोलते नहीं हैं; यह निशब्द बनाने का एक प्रयास है. ‘निशब्द’ का अर्थ है—‘वह जो ध्वनि नहीं है’— शरीर, मन और सभी सृष्टि से परे. ध्वनि से परे का अर्थ ध्वनि की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि ध्वनि से परे है.
मौन का अभ्यास करने और मौन हो जाने में अंतर है. अगर आप किसी चीज का अभ्यास कर रहे हैं, तो जाहिर है कि आप वह नहीं हैं. सचेत रूप से मौन की आकांक्षा करने से मौन हो जाने की संभावना है.
ध्वनि सतह की है, मौन अंतरतम का है. अंतरतम ध्वनि की पूर्ण अनुपस्थिति है. ध्वनि की अनुपस्थिति का अर्थ है— प्रतिध्वनि, जीवन, मृत्यु, सृजन की अनुपस्थिति; किसी के अनुभव में सृजन की अनुपस्थिति सृजन के स्रोत की विशाल उपस्थिति की ओर ले जाती है. तो एक ऐसा स्थान, जो सृजन से परे है. एक ऐसा आयाम, जो जीवन और मृत्यु से परे है, उसे मौन या निशब्द कहा जाता है. कोई ऐसा नहीं कर सकता; कोई केवल यह बन सकता है.