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क्या राष्ट्रपति की आपत्ति पर बदला जा सकता है सुप्रीम कोर्ट का फैसला? क्या कहता है अनुच्छेद 143

भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से यह सलाह मांगी है कि क्या राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर निर्णय लेने की समयसीमा सर्वोच्च अदालत द्वारा निर्धारित की जा सकती है. यह निर्णय तब लिया गया जब 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को भेजे गए विधेयकों का निपटारा तीन महीने के भीतर किया जाना चाहिए.

क्या है अनुच्छेद 143(1)?

संविधान के अनुच्छेद 143(1) के अनुसार, राष्ट्रपति किसी कानूनी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से सलाह ले सकते हैं. यह सलाह कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होती, लेकिन इसका संवैधानिक महत्व अत्यधिक होता है. सुप्रीम कोर्ट यह सलाह अनुच्छेद 145(3) के तहत पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा प्रदान करता है. राष्ट्रपति ने 13 मई को इस संदर्भ में 14 कानूनी प्रश्नों को शामिल करते हुए एक अनुरोध भेजा.

क्या सुप्रीम कोर्ट पहले भी राय देने से मना कर चुका है?

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति की राय मांगने के दो अवसरों पर उत्तर देने से इनकार किया है. 1993 में राम जन्मभूमि–बाबरी मस्जिद विवाद के संदर्भ में मंदिर की पूर्वस्थिति पर राय मांगी गई, जिसे कोर्ट ने धार्मिक और संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ मानते हुए खारिज कर दिया. इससे पहले, 1982 में पाकिस्तान से आए प्रवासियों के पुनर्वास से संबंधित कानून पर राय मांगी गई थी, लेकिन बाद में वह कानून पारित हो गया और कोर्ट में याचिकाएं दायर होने के कारण राय अप्रासंगिक हो गई.

क्या राष्ट्रपति निर्णय को पलटना चाहती हैं?

सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही स्पष्ट किया है कि अनुच्छेद 143 का उपयोग किसी पूर्व निर्णय की समीक्षा या उसे पलटने के लिए नहीं किया जा सकता. 1991 में कावेरी जल विवाद के मामले में कोर्ट ने कहा था कि निर्णय के बाद राष्ट्रपति की राय मांगना न्यायपालिका की गरिमा के खिलाफ है. यदि सरकार चाहती है, तो वह पुनर्विचार याचिका या क्युरेटिव याचिका दायर कर सकती है, जो न्यायिक प्रक्रिया का एक हिस्सा है.

राष्ट्रपति ने पूछे कैसे प्रश्न?

अधिकांश प्रश्न 8 अप्रैल के निर्णय से संबंधित हैं, लेकिन कुछ प्रश्न सुप्रीम कोर्ट की अपनी शक्तियों पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं. प्रश्न 12 में यह पूछा गया है कि क्या सुप्रीम कोर्ट को पहले यह निर्धारित करना चाहिए कि कोई मामला संविधान की व्याख्या से जुड़ा है या नहीं, ताकि उसे बड़ी पीठ के पास भेजा जा सके. इसी प्रकार, प्रश्न 13 में सुप्रीम कोर्ट के अनुच्छेद 142 के तहत पूर्ण न्याय की शक्ति के उपयोग की सीमाओं पर चर्चा की गई है. प्रश्न संख्या 14 में यह स्पष्ट किया गया है कि केंद्र-राज्य विवादों की प्राथमिक सुनवाई का अधिकार किसके पास है—क्या यह केवल सुप्रीम कोर्ट के पास है या अन्य अदालतों के पास भी?

न्यायपालिका बनाम कार्यपालिका की लड़ाई

यह मामला उन स्थितियों से उत्पन्न हुआ है जब राज्यपाल विपक्ष-शासित राज्यों के विधेयकों को लंबित रखते हैं या उन्हें अस्वीकृत करते हैं. तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि ने 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजा था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह केंद्र-राज्य संबंधों में संतुलन का मुद्दा है और समय सीमा का पालन आवश्यक है. राष्ट्रपति को निर्देश मिलने से सरकार ने इसे संवैधानिक असंतुलन के रूप में देखा. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और आर वेंकटरमणी ने भी इसे कार्यपालिका की गरिमा के खिलाफ बताया.

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