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टू चाइल्ड पॉलिसी की याचिका को किया सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाने और दो बच्चों की नीति लागू करने की मांग वाली याचिकाओं पर विचार करने से इन्कार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जनसंख्या नियंत्रण सरकार के विचार करने का विषय है इस पर कोर्ट कोई आदेश नहीं दे सकता। कोर्ट का नकारात्मक रुख देखते हुए याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से अपनी याचिकाएं वापस ले लीं। कुछ याचिकाएं कोर्ट ने खारिज कर दीं।ये टिप्पणियां और आदेश न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और एएस ओका की पीठ ने भाजपा नेता और वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय व तीन अन्य याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं पर दिये।

यह एक सामाजिक मुद्दा है: सुप्रीम कोर्ट

पीठ ने कहा कि जनसंख्या कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जिसे एक दिन में रोक दिया जाए। ये एक सामाजिक मुद्दा है और भी कई मुद्दे इससे जुड़े हैं। ये सरकार के देखने का विषय है। सरकार इसका परीक्षण कर सकती है। कोर्ट आदेश नहीं दे सकता। कोर्ट के रुख को देखते हुए उपाध्याय ने कहा कि वे याचिका में की गई बाकी सारी मांगें छोड़ रहे है कोर्ट सिर्फ एक मांग मान ले कि मामला विधि आयोग को भेजे और विधि आयोग से कहे कि वो जनसंख्या नियंत्रण पर अध्ययन करके रिपोर्ट दे। उपाध्याय ने कहा कि जनसंख्या विस्फोट बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है। लेकिन पीठ इसके लिए भी राजी नहीं हुई।

उपाध्याय ने मामले को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि हमारे पास सिर्फ दो फीसद जमीन है और जनसंख्या 20 फीसद है इसलिए इस मुद्दे पर विचार होना चाहिए। जब उपाध्याय अपनी दलीलें देते रहे तो जस्टिस कौल ने कहा कि उन्होंने ऐसी काफी सामग्री पढ़ी है जिसमें कहा गया है कि हमारे देश में जनसंख्या दर घटी है। देश जनसंख्या स्थिरीकरण की स्थिति में पहुंच गया है। केंद्र सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार जनसंख्या नियंत्रण करने के लिए जो कर सकती है कर रही है। सरकार ने अपने हलफनामे में ये सब बातें कही हैं। इसके बाद जब कोर्ट याचिका खारिज करने लगा तो उपाध्याय ने याचिका वापस लेने की इजाजत मांगी जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।

हमारे पास और भी कई अन्य महत्वपूर्ण काम हैं: सुप्रीम कोर्ट

पीठ ने सवाल किया, ‘क्या यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर हमें हस्तक्षेप करना चाहिए?’। पीठ ने मौखिक तौर पर कहा कि आगे कहा कि हमारे पास और भी कई अन्य महत्वपूर्ण काम हैं। सुनवाई के अंत में उपाध्याय ने यह भी कहा कि भारत के पास लगभग दो प्रतिशत भूमि और चार प्रतिशत पानी है, लेकिन दुनिया की 20 प्रतिशत आबादी है। शीर्ष अदालत ने 10 जनवरी, 2020 को उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र और अन्य से जवाब मांगा था।

जानें याचिकाकर्ता ने क्या दी थी दलील

बता दें कि इस याचिका को उच्च न्यायालय से खारिज किए जाने के बाद 3 सितंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी। इससे पहले उच्च न्यायालय ने कहा था कि यह कानून बनाना किसी सांसद और राज्य के विधानसभा का है न कि अदालत का। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उच्च न्यायालय, इस बात को समझने में असमर्थ रही कि जनसंख्या विस्फोट को नियंत्रित किए बिना सभी नागरिकों को स्वच्छ हवा का अधिकार, पीने के पानी का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार, शांतिपूर्ण नींद का अधिकार, आश्रय का अधिकार, आजीविका का अधिकार और संविधान के अनुच्छेद 21 और 21ए के तहत शिक्षा के अधिकार की गारंटी देने में मुमकिन नहीं है।

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