नई दिल्ली: प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय के मामले में शहर और गांव के बीच अमीरी-गरीबी की खाई अब भी बेहद चौड़ी है. आंकड़े बताते हैं कि गांव और शहर में सबसे निचले पायदान के लोग खाने-पीने पर जितना खर्च करते हैं, शीर्ष पर मौजूद लोग उसका सात से दस गुना तक ज्यादा खर्च करते हैं.
सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, गांवों में प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय 3,773 और शहरों में 6,459 रुपये है. यह व्यय गांव के मुकाबले शहरों में 71 फीसदी ज्यादा है. राष्ट्रीय स्तर पर यह तस्वीर उभरकर आती है. बता दें कि 2011-12 में हुए इसी तरह के सर्वेक्षण के दौरान गांव-शहर के बीच उपभोक्ता का अंतर 84 फीसदी दर्ज किया गया था. इसमें थोड़ी कमी आई जरूर है लेकिन 71 फीसदी का अंतर अभी भी बहुत बड़ा है.
गांवों में निचले स्तर पर व्यय महज 13,73 रुपये
रिपोर्ट के अनुसार, गांवों में निचले पायदान के पांच फीसदी लोगों का प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय महज 1,373 रुपये है. यह राष्ट्रीय औसत का करीब एक तिहाई के बराबर ही है. वहीं, गांवों में पांच फीसदी शीर्ष लोगों का व्यय 10,501 रुपये है, जो पांच फीसदी निचले तबके की तुलना में 7.6 गुना ज्यादा है.
शहरों में यह फर्क 10 गुना से अधिक
वहीं, शहरों में सबसे निचले पायदान के पांच फीसदी लोग 2001 रुपये ही खर्च कर पाते हैं, जो शहरों के व्यय के राष्ट्रीय औसत के 32 फीसदी के बराबर ही है. वहीं, शीर्ष पांच फीसदी लोगों का उपभोक्ता व्यय 20,824 रुपये प्रतिमाह प्रति व्यक्ति है, जो निचले पायदान के पांच फीसदी लोगों के व्यय का 10.4 गुना ज्यादा है.
राज्यों के स्तर पर स्थितियां अलग-अलग
हालांकि, राज्यों में यह अंतर अलग-अलग है. जैसे केरल में यह अंतर सबसे कम महज 19 फीसदी है. वहां गांवों में उपभोग व्यय 5924 तथा शहर में 7078 है. यानी अंतर बहुत कम है. जबकि असम में सबसे ज्यादा 79, झारखंड में 78 तथा ओडिशा में 76 फीसदी है. असम में गांवों में प्रति माह उपभोग व्यय 3432 तथा शहरों में महज 6136 रुपये है. यह राष्ट्रीय औसत से भर कम है. मासिक उपभोग व्यय में खाने-पीने की वस्तुओं के अलावा यातायात, किराया, मनोरंजन, कपड़े, जूते आदि के व्यय को भी शामिल किया जाता है. रिपोर्ट में अगस्त 2022-जुलाई 2023 तक के व्यय के आंकड़े शामिल हैं.