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खुदरा महंगाई की गणना में खाने-पीने का सामान घटेगा

नई दिल्ली: सरकार खुदरा महंगाई के आंकड़े को नियंत्रित करने के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में मौजूद खाद्य सामग्रियों का भार घटा सकती है. सरकार ने इस सूचकांक में बदलाव के लिए एक समिति बनाई थी. यह समिति इस मुद्दे पर विचार कर रही है. इस मामले से जुड़े सूत्रों के मुताबिक अगर सरकार यह बदलाव लाती है तो इससे खुदरा महंगाई बढ़ने की रफ्तार सुस्त पड़ सकती है. अभी इस सूचकांक में खाद्य सामग्रियों की हिस्सेदारी काफी ज्यादा है. हाल में खाद्य मुद्रास्फीति में उछाल की वजह से खुदरा महंगाई भी काफी बढ़ी है.

इस वक्त उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में खाद्य सामग्रियों की गणना का भार ज्यादा है. जून में खाने-पीने के सामान की कीमतें एक साल पहले के मुकाबले 9.36 फीसदी बढ़ी थीं. इससे खुदरा महंगाई बढ़कर 5.08 फीसदी पर पहुंच गई थी. अगर उस महीने के खुदरा मूल्य सूचकांक में से खाने-पीने का सामान और ऊर्जा की कीमतों को निकाल दिया जाए तो जून में खुदरा महंगाई का आंकड़ा सिर्फ 3.15 फीसदी आता.

भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. नागेश्वरन ने भी पिछले महीने तर्क दिया था कि मुद्रास्फीति लक्ष्य में खाद्य महंगाई को शामिल न किया जाए.

मौद्रिक नीति का अहम हिस्सा
सांख्यिकी मंत्रालय के तहत गठित समिति उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में खाद्य पदार्थों का भार आठ फीसदी तक घटा सकती है. सूत्रों ने कहा अभी इस सूचकांक में खाद्य और पेय सामग्रियों का भार 54.2 फीसदी है. इस वक्त का उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 2011-2012 में उपभोक्ता के खर्च करने के पैटर्न पर किए गए सर्वेक्षण पर आधारित है. जानकारों का कहना है कि यह तरीका बहुत पुराना हो चुका है. इस वजह से महंगाई के सही आंकड़े पाने में गड़बड़ी हो सकती है. हाल के सर्वेक्षण से पता चला है कि उपभोक्ता एक दशक पहले के मुकाबले आज अपने बजट का कम हिस्सा खाने-पीने पर खर्च कर रहे हैं.

भारतीय रिजर्व बैंक ब्याज दरें तय करने के लिए इसी आंकड़े का इस्तेमाल करता है. आरबीआई ने एक साल से ज्यादा समय से रेपो रेट यानी ब्याज दरों में बदलाव नहीं किया है. इसकी वजह यह है कि महंगाई चार फीसदी के उसके लक्ष्य से ज्यादा रही है. केंद्रीय बैंक गुरुवार को अपनी मौद्रिक नीति की समीक्षा के नतीजों का ऐलान करेगा.

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