विशेषज्ञों का कहना है कि घरेलू मुद्रा के मूल्य में गिरावट से आयातित कच्चे माल के महंगा होने से उत्पादन लागत बढ़ेगी और कुल मिलाकर देश में महंगाई बढ़ सकती है, जिससे आम लोगों की जेब पर प्रभाव पड़ेगा. हालांकि, दुनियाभर में कच्चे तेल की कीमतों में नरमी के कारण, भारत की मुद्रास्फीति पर बहुत प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है.
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि बीते वर्ष रुपये में लगभग तीन प्रतिशत की गिरावट के बावजूद यह एशिया के अपने समकक्ष देशों की तुलना में बेहतर स्थिति में है. जाने-माने अर्थशास्त्रत्त्ी और मद्रास स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के निदेशक प्रोफेसर एन.आर. भानुमूर्ति ने कहा कि रुपये के मूल्य में गिरावट आयातित मुद्रास्फीति (आयातित महंगे कच्चे माल) से चीजें महंगी होंगी. हालांकि, अगर इससे निर्यात को गति मिलती है तब आर्थिक वृद्धि और रोजगार पर सकारात्मक असर पड़ सकता है. यदि रुपये में गिरावट बाजार की ताकतों (मांग और आपूर्ति) के कारण होती है, तो उत्पादन वृद्धि और महंगाई दोनों बढ़ेंगे.